प्रेम मानव जीवन का सवोच्च वरदान है। प्रेम के कारण ही
मानव-मानव है। सष्ृ टट के प्रसत प्रेमभाव के कारण मानव महानता
प्राप्त करता है। प्रेम का मलू ाधार आत्मा है। इसका प्रकाशन सचत्त
व इंसियों के माध्यम से होता है। इंसियों की संपुणण सियाएं
सचत्तवसृ त्तयों से ही सनयंसित होती है। वह आत्मा का गणु होने के
कारण सत्य, सशव और संदु र है। प्रकृ सत ईश्वर का सवराट रुप है
जो प्रेम के सिू में सनबध्द है। सवश्व का हर प्राणी सबना प्रेम के
जीवन संचालन में असमथण हैं। जब सारे प्राणी इस प्रेम तत्त्व
वस्तु के असधन है तब तो स्वाभासवक है सक मानव जीवन में इस
प्रेम का सवासधक प्रभाव है। प्रेम के प्रभाव से मानव की आंतसरक
शष्ततयों का जागरण होता है। इससे मानव अपना पुणण उन्नसत
कर पाता है। प्रेम का सासनध्य, प्राप्य मानव को प्रगसत की ओर